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Friday, March 3, 2017

आग़ोश

समन्दर की गर्जना किनारे को देहला देती है
लहरों की भीषणता किनारे को हिला देती है।
पर किनारा कब समन्दर से मुँह मोड़ता है
हर लहर का आवेग अपनी बाँहों में तोड़ता है।
जितना ज़्यादा कोपित हो समन्दर, उतनी ही बाँहें किनारे की फ़ैल जाती हैं।
ज़ख़्मी कितना ही करें लहरें, आख़िर आग़ोश में सिमट जाती हैं।

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