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Thursday, January 23, 2014

रिक्त

आहटें अविराम हैं, एहसास रिक्त है
चाहतें अविराम हैं, विश्वास रिक्त है
समंदर की छाती सा उद्वेलित है मन
लहरें अविराम हैं, ठहराव रिक्त है

वक़्त का पैमाना तो आज भी वही है
दिन रात का ठिकाना तो आज भी वही है
हर लम्हे में समाया सदियों का सफ़र है
वक़्त तो वही है, रफ़्तार रिक्त है

रिक्त चाहें, रिक्त राहें, रिक्त मंज़िल, रिक्त बाहें
रिक्त ख़ुश्बू फूल से है, रिक्त सपनों से निगाहें

एहसास रिक्त, विश्वास रिक्त, कुछ धड़कनों से श्वाँस रिक्त
हँस रहे हैं होंठ, है आँखों से मुस्कान रिक्त

रिक्तता के वशीकरण से शब्द भी अब रिक्त हैं
अरिक्त बस रिक्तता हरसूँ , शेष सब ही रिक्त है

रिक्त मन में,
अंकित

7 comments:

  1. kyo rikt ha bhai itna.....achha likha ha...ab 2 line meri taraf se bhi...jara gaur farmaiega...
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    Man me vishwas bharo....Uthho, Jago aage badho...
    Jivan me Anand bharo.....'RIKT' ko 'ATIRIKT' karo...
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  2. Wah wah....bahhut khuoob...!!!

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