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Sunday, October 9, 2011

वक़्त


वक़्त बे-वक़्त ज़ेहन में 
ख्यालों का सैलाब आता है..
कभी हँसाता है कभी रुलाता है 
वक़्त हर वक़्त.. वक़्त का एक नया रूप दिखलाता है..

वक़्त गर चाहे तो अनसोचे अनचाहे ही 
अचानक प्रिय से कोई मिल जाता है..
और कभी कोई कितना भी जतन करे
वक़्त की चाह के आगे मन मसोस कर रह जाता है..

वक़्त का अनदेखा पहिया
अनंतर घूमता जाता है..
वक़्त ही पतझड़ के बाद सावन
और सावन के बाद बहार लाता है..

वक़्त भी कभी कभी
भरपूर प्यार लुटाता है..
ज़ख्म दिल का कितना ही गहरा हो
सुना है..वक़्त के मरहम से भरता चला जाता है..

वक़्त साँथ उसी का देता है 
जो वक़्त का साँथ निभाता है..
वक़्त का इंतज़ार करते करते वरना
वक़्त हाँथ से निकल जाता है..

न सोच तेरी रातों में कितने अँधेरे हैं 
न सोच तुझे हाँसिल सारे ही सवेरे हैं..
गम के बाद ख़ुशी और फिर गम का फरमान आता है
वक़्त कैसा भी हो..वक़्त आने पर बदल ही जाता है..

वक़्त की रेत पर..
अंकित..

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