ना तू ये शरीर है, ना ये शरीर ही तेरा है
मेरे तेरे का ही तो, बस ये सारा फेरा है
पानी कहीं सोता, कहीं नदिया, तो कहीं सागर होता है
शीतलता न कभी कम होती, नमक बस कहीं ज़्यादा तो कहीं कम होता है
भविष्य था कल वो, वर्तमान जो, कल अतीत हो जायेगा
गति न कभी कम होगी, बस अनुकूल कभी प्रतिकूल समय व्यतीत हो जायेगा
कल बचपन में, आज बड़ा जो, कल माटी हो जायेगा
बदला जब जो, स्वरूप था तब वो, स्वरूप बदलता जायेगा
ना बदले जो, सनातन बस वो, तत्व बोध हो जब जायेगा
ज्ञान जो "केवल", गुण बस तेरा, आत्म बोध हो तब जायेगा
तत्वार्थी,
अंकित
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