ज़िन्दगी बस एक पल में थम जाएगी
पात्र कितना ही खूब निभाओ, ना उसपे रहम ये खायेगी
ज़िन्दगी...
जो लाया था, वही सांथ चल रहा
अच्छा बुरा, ग़म और ख़ुशी में फल रहा
जो लिये जा रहा है, उसका तो कोई भान नहीं
क्या छूटेगा, क्या जायेगा सांथ, जब इसका ही कोई ज्ञान नहीं
ज्ञान अगर है, तो भी ज्ञान विमुख आचार है
ना दिशा कोई, ना क्रिया कोई, ना ही चिंता, ना विचार है
जिस नाट्य का पर्दा उठा कभी, वो पर्दा अवश्य गिरायेगी
ज़िन्दगी...
नाट्य ये कब से चल रहे, नाट्य ये चलते रहेंगे
पात्र बदलते रहे हैं, पात्र बदलते रहेंगे
पात्र निभाते निभाते, नए नाट्य की पात्रता बुन रहा
चक्र अनादि चल रहा जो, सांथ उसी का चुन रहा
नाट्य की पात्रता से, अपात्र गर बन जाये तो
नाट्य है कुछ और नहीं, ज्ञाता मात्र बन जाये तो
नाट्य लीला अविरत जो थी, आखिरी नाट्य बस आएगा
पात्रता के बंधन से जब, पात्र मुक्त हो जायेगा
गिरा जो पर्दा आखिरी, ना उसे फिर उठा पायेगी
समय के पदचिन्हों में यूँ, कहानी सर्वदा जम जाएगी
ज़िन्दगी...
नाट्य का पात्र
अंकित
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