रहकर भी महफ़िल में कोई..तनहा..क्यों होता है..अक्सर
दिल के जितना है करीब कोई..उतना ही दूर..क्यों होता है..अक्सर..
नहीं होता साया भी जिनका..रूबरू..इन निगाहों से
है वो आस पास यहीं..एहसास..क्यों होता है..अक्सर..
तनहा इस दिल के लिए वो..दोस्त कहीं से लाता है
दोस्तों की दोस्ती में..हर गम..दिल भूल जाता है..
हमदम..हमकदम..बन जाते हैं जब दोस्त वही
कर देता है दूर उनसे..गुनाह उससे..क्यों होता है..अक्सर..
सोचा नहीं था रिश्ते कुछ.. इतने अज़ीज़ हो जायेंगे
दूर होकर वो हमें..इस कदर याद आयेंगे..
भूल न जाएँ वो हमें..रिश्तों की भीड़ भाड़ में
खोने का उनको..ये डर..क्यों होता है..अक्सर..
उनके ज़ेहन में भी कभी..कुछ बात उठती होगी..
यादों में उनकी..हमारी भी..कुछ याद उठती होगी..
मुस्कुराते होंगे वो भी..फिर सोचकर उन लम्हों को
अहसास दिल में..विश्वास दिल में..क्यों होता है..अक्सर..
दोस्त..हमेशा..
अंकित
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