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Monday, March 25, 2019

बचपन का बढ़प्पन

बचपन का बढ़प्पन बढ़े होकर समझ आया
सरल था जीवन, जब समझ कम थी
समझदार बनकर तो, सब जटिल ही पाया
बचपन का बढ़प्पन बढ़े होकर समझ आया

छोटी छोटी बातों में, बड़ी ख़ुशी खोज लेते थे कभी
अब बड़ी बड़ी बातों में, छोटी सी ख़ुशी को भी लापता पाया
बचपन का बढ़प्पन बढ़े होकर समझ आया

गिरता सम्हलता, छोटे नन्हे पैरों पर चलता, बचपन दिलों के कितने क़रीब था
बढ़े पैरों से चलते चलते, जाने कितनी दूर निकल आया
बचपन का बढ़प्पन बढ़े होकर समझ आया

काफी होता था कट्टी होने के बाद, सिर्फ़ मुँह पर दो उंगलियाँ रखकर दोस्त कहना
अब बातों की गहराई में जाने के मान वश, बमुश्क़िल ही कोई टूटा दिल जुड़ पाया
बचपन का बढ़प्पन बढ़े होकर समझ आया

पल में रूठना, पल में मान जाना, छोटा सा निश्छल, मासूम सा था दिल
बड़ा तो बहुत हुआ अब, पर मासूमियत कहीं बचपन में ही छोड़ आया
बचपन का बढ़प्पन बढ़े होकर समझ आया

मतलब का मतलब मालूम न था जब, बेमतलब जहाँ के मतलब होते थे
मतलब का मतलब मालूम कर करके अब, बेमतलब के चक्रव्यूह में, जीवन फसा पाया
बचपन का बढ़प्पन बढ़े होकर समझ आया

बचपन में अंकित...