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Sunday, November 18, 2018

विरोधाभास

लौ है दीपक में, बाती में जलन है
रौशनी है जग में, सूरज में तपन है

प्यास बुझाती बारिश, बादल का झरता नयन है
आग़ोश में किनारे के लहरें, समंदर में विचलन है

देती है जीवन हवा, जीवन उसका भटकन है
चलते सांथ सुबह के सब, रात संग सूनापन है

अनगिनत सितारे आकाश में, हांसिल चाँद को अकेलापन है
मिलती हँसी होंठों को, किनारा आँख का नम है

लहरों सी होती ख़ुशी, समंदर जैसा ग़म है
लेता साँसें बहुत है दिल, जीता बहुत कम है

पानी पर अंकित