Pages

Thursday, March 22, 2018

आकार, निराकार, एकाकार

समंदर चाहतों का, एक बूँद हो रहा है
शायद से मौसम, अब धुंध खो रहा है

बूँद भी तो, अनगिनत चाहतें समेटे है
धुंध के आगोश में, मन अभी भी बैठे है

बूँद गर ये छोटी, और छोटी हो जाये
धुंध का घनत्व, सहज ही कम हो जाये

बूँद हो इतनी छोटी, कि छोटी न हो पाए
धुंध का अस्तित्व, फिर नगण्य हो जाये

इकलौती चाहत ही बस, बूँद में समाये
उस एक बूँद से, जन्मों की प्यास बुझ जाये

चाहत जिस पल में, वो साकार होगी
बूँद लिए आकार, जब निराकार होगी

धुंध का अस्तित्व, फिर तार तार हो जायेगा
इस पार और उस पार, एकाकार हो जायेगा

इस पार पे अंकित...